Saturday, 24 December 2016

सभी जल विवादों के लिए एक ही न्यायाधिकरण

सभी जल विवादों के लिए एक ही न्यायाधिकरण

केंद्र ने सभी अंतरराज्यीय नदी जल विवादों को निपटने के लिए एक ही स्थायी न्यायाधिकरण गठित करने का फैसला किया है।
★उद्देश्य:- इसका मकसद विवादों को तेजी से निपटारा करना है।
- ज्ञात हो कि इस समय विभिन्न विवादों के लिए कई अलग-अलग न्यायाधिकरण है।
★केंद्र ने इसके साथ ही जरूरत के हिसाब से विवादों पर गौर करने के लिए कुछ पीठ स्थापित करने का प्रस्ताव किया है।
★न्यायाधिकरण के विपरीत, यह पीठ विशेष विवाद सुलझ जाने के बाद अस्तित्व में नहीं रहेगी। इसके लिए सरकार अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 में संशोधन कर करेगी।
★ संशोधन को संसद के अगले सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।

★केवल एक स्थायी न्यायाधिकरण होगा जिसके प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जरूरत पड़ने पर पीठें गठित की जाएंगी। विवाद सुलझने पर वह पीठ अस्तित्व में नहीं रहेगी।

★ जल न्यायाधिकरणों ने विवादों में अंतिम फैसला सुनाने के लिए वर्षों लिए। जबकि प्रस्तावित न्यायाधिकरण के तीन वर्ष में अपना फैसला सुनाने की संभावना है।

★न्यायाधिकरण के साथ, संशोधन के जरिये विवाद निपटारा समिति बनाने का भी प्रस्ताव है। इस समिति में विशेषज्ञ एवं नीति निर्माता होंगे। यह समिति मामला न्यायाधिकरण में जाने से पहले गौर करेगी।

★न्यायाधिकरणों के अधिकार में विस्तार करने का भी प्रस्ताव है। इसके तहत इनके फैसले स्वत: ही त्वरित आधार पर लागू हो जाएंगे। पूर्व में न्यायाधिकरण के फैसले सरकार की अधिसूचना पर ही लागू होते थे।

कहाँ- कहाँ विवाद :एक दर्जन विवाद कई राज्यों में तनाव के बने वजह

देश में करीब एक दर्जन नदियों के पानी को लेकर राज्यों में विवाद हैं। कई बार यह तनाव अतिसंवेदनशील हो जाते हैं और कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाते हैं। हाल में कावेरी नदी के पानी को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक में हिंसा इसके ताजा उदाहरण है।

★★पांच विवाद जिनपर न्यायाधिकरण कर रहा विचार

1. रावी ब्यास नदी विवाद

इन दोनों नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर पंजाब, राजस्थान और हरियाणा के बीच विवाद है। अप्रैल 1986 में इसके हल के लिए रावी-ब्यास न्यायाधिकरण का गठन किया गया। हाल में करार के तहत सतलुज-यमुना लिंक को लेकर पंजाब और हरियाणा में तनाव का माहौल है।



2. कावेरी जल विवाद

कर्नाट और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद दशकों को पुराना है। इसी के मद्देनजर  2 जून 1990 को केंद्र ने कवेरी जल विवाद प्राधिकरण का गठन किया। मामले में केरल और पुडुचेरी भी पक्षकार हैं। हाल में कर्नाटक स्थित मेटुर बांध से पानी छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोनों राज्यों में हिंसक प्रदर्शन हुआ था।



3. वंशधारा नदी विवाद

वर्ष 2006 में ओडिशा ने वंशधारा नदी के जल को लेकर आंध्रप्रदेश की शिकायत केंद्र की और नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत न्यायाधिकरण बनाने की मांग की। इसी वर्ष केंद्र के हस्तक्षेप से दोनों राज्य 50-50 फीसदी जल बंटवारे पर सहमत हुए। केंद्रीय जल आयोग करता है निगरानी। स्थायी समाधान के लिए चर्चा जारी।



4. मांडवी नदी विवाद

जुलाई 2002 में गोवा ने मांडवी जल के बंटवारे को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक की शिकायत की। साथ ही मामले के हल के लिए न्यायाधिकरण के गठन की मांग की। सितंबर 2006 में गोवा ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 10 दिसंबर 2009 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मांडवी नदी जल न्यायाधिकरण को मंजूरी दी।



5. कृष्णा नदी विवाद

कृष्णा नदी के जल को लेकर 1969 में महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में विवाद पैदा हुआ। इसके मद्देनजर 10 अप्रैल को कृष्णा नदी बेसिन न्यायाधिकरण का गठन किया गया। 31 मई 1976 में न्यायाधिकरण की रिपोर्ट के आधार पर तीनों राज्यों का कोटा तय किया गया। 2004 में दूसरे न्यायाधिकरण का गठन किया गया।

=>इन नदियों पर भी रार

1. इंदिरासागर (पोलावरम) परियोजना

1980 में गोदावरी जल प्राधिकरण ने आंध्र प्रदेश की ओर से नदी पर बनाए जाने वाले इंदिरासागर (पोलावरम) परियोजना को हरी झंडी दी। इसपर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश , ओडिशा, कर्नाटक इसमें पक्षकार थे। ओडिशा इसे मुद्दे को 2007 में सुप्रीम कोर्ट लाया। छत्तीसगढ़ ने भी आपत्ति जताई। 2009 में आंध्र ने इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा देने की मांग केंद्र से की।

2. बाभली परियोजना

महाराष्ट्र गोदावरी नदी पर बाभली परियोजना के तहत बांध बनाना चाहता है। लेकिन 2005 में आंध्र प्रदेश ने इस पर आपत्ति दर्ज की और इसे गोदावरी नदी प्राधिकरण के आदेश का उल्लंघन करार दिया। 2006 में आंध्र प्रदेश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक समिति गठित करने का आदेश दिया।

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