Thursday 5 January 2017

6 जनवरी की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

6 जनवरी की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

2002 - भारत ने सीमा में घुस आया पाकिस्तान का जासूसी विमान मार गिराया, दक्षेस शिखर सम्मेलन सम्पन्न, काठमाण्डू घोषणा-पत्र में आतंकवाद के खात्में पर ज़ोर, भारत की राजनीतिक सफलता, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री  टोनी ब्लेयर व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बातचीत के बाद दिल्ली घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर, बांग्लादेश की मुद्रा से शेख़ मुजीब का चित्र हटाया गया, संयुक्त राज्य अमेरीका में एक और विमान भवन से टकराया।

2003 - रूस ने संयुक्त राष्ट्र से बिना अनुमति लिये इराक के ख़िलाफ़ सैनिक कार्रवाई पर अमेरिका को चेतावनी दी।

2007 - उत्तर प्रदेश का हिन्दी संस्थान की ओर से साहित्य के क्षेत्र में दिये जाने वाले वार्षिक पुरस्कारों के अंतर्गत वर्ष 2007 के भारत भारती सम्मान केदारनाथ सिंह को प्रदान करने की घोषणा हुई।

2008 -राज्यसभा सदस्य और बंगलुरू के उद्यमी तथा पूंजी और निवेश कंपनी जूपिटर कैपिटल के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजीव चन्द्रशेखर को फिक्की का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

अमेरिका के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में आए तूफ़ान से भारी तबाही।

2010- नई दिल्ली में यमुना बैंक-आनंद विहार सेक्शन की मेट्रो रेलों का परिचालन आरंभ।

6 जनवरी को जन्मे व्यक्ति

1910 - जी. एन. बालासुब्रमनियम, भारतीय कर्नाटक संगीतकार

1932 - कमलेश्वर - हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार

1959 - कपिल देव, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान

1966 - ए आर रहमान, ऑस्कर विजेता भारतीय संगीतकार

1996- किशन श्रीकांत, फ़िल्म निर्देशक, अभिनेता

🔴🏅1949 - बाना सिंह - परमवीर चक्र 🏅से सम्मानित भारतीय सेना के सूबेदार।

1918- भरत व्यास, बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार

1883 - ख़लील जिब्रान - विश्व के श्रेष्ठ चिंतक महाकवि के रूप में ख्याति प्राप्त करने वाले महान दार्शनिक।

1928 - विजय तेंदुलकर - भारतीय नाटककार और रंगमंचकर्मी।

1940 - नरेन्द्र कोहली - प्रसिद्ध लेखक।

6 जनवरी को हुए निधन

1847 - त्यागराज - प्रसिद्ध कवि तथा कर्नाटक संगीत के संगीतज्ञ।

1852 - लुई ब्रेल - नेत्रहीनों के लिये ब्रेल लिपि का निर्माण करने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति

1885 - भारतेन्दु हरिश्चंद्र, आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रवर्तक, जिन्होंने हरिश्चंद्र मैगजीन, कविवचन सुधा जैसी पत्रिका निकाली तथा अंधेरनगरी और भारत दुर्दशा आदि अनेक नाटक लिखा।

2008 - प्रमोद करण सेठी - प्रसिद्ध भारतीय चिकित्सक।

2009- जी.एम. शाह, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री

📕📕📕
🇮🇳🇮🇳बाना सिंह🇮🇳🇮🇳



पूरा नाम:;नायब सूबेदार बाना सिंह

जन्म::6 जनवरी, 1949

जन्म भूमि::काद्‌याल गाँव, जम्मू और कश्मीर

पुरस्कार-उपाधि::परमवीर चक्र (1987)

नागरिकता::भारतीय

रैंक:;सूबेदार, मेजर, कैप्टन

यूनिट;;8 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इंफेंटरी

सक्रिय वर्ष::1969 से 2000 तक

अन्य जानकारी::सियाचिन में जो चौकी बाना सिंह ने फ़तह की, उनका नाम बाद में 'बाना पोस्ट' रख दिया गया|

🔴 6 जनवरी, 1949 काद्‌याल गाँव, जम्मू और कश्मीर) परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय व्यक्ति है।

इन्हें यह सम्मान सन 1987 में मिला। पाकिस्तान के साथ भारत की चार मुलाकातें युद्धभूमि में तो हुई हीं, कुछ और भी मोर्चे हैं, जहाँ हिन्दुस्तान के बहादुरों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर कर रख दिया। सियाचिन का मोर्चा भी इसी तरह का एक मोर्चा है, जिसमें 8 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इंफेंटरी के नायब सूबेदार बाना सिंह को उसकी चतुराई, पराक्रम और साहस के लिए परमवीर चक्र दिलवाया।

🔴 जीवन परिचय

बहादुर नायब सूबेदार बाना सिंह का जन्म 6 जनवरी 1949 को जम्मू और कश्मीर के काद्‌याल गाँव में हुआ था। 6 जनवरी 1969 को उनका फौजी जीवन शुरू हुआ थ और वह अपनी इस यूनिट में आए थे। सियाचिन में जो चौकी बाना सिंह ने फ़तह की, उनका नाम बाद में 'बाना पोस्ट' रख दिया गया। बाना सिंह ने इस कार्यवाही के लिए परमवीर चक्र पाया। उन्होंने कारगिल की लड़ाई का हाल भी जाना-सुना। उस समय तक वह फौज की सेवा में कार्यरत थे।

🔴फौजी जीवन

सियाचिन के बारे में दूर बैठकर केवल कल्पना ही की जा सकती है, वह भी शायद बहुत सही ढांग से नहीं। समुद्र तट से 21 हजार एक सौ तिरपन फीट की ऊचाँई पर स्थित पर्वत श्रणी, जहाँ 40 से 60 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार से बर्फानी हवाएँ चलती ही रहती हैं और जहाँ का अधिकतम तापमान -35° C सेल्सियस होता है वहाँ की स्थितियों के बारे में क्या अंदाज लगाया जा सकता है। लेकिन यह सच है कि यह भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण जगह है।

1949 में कराची समझौते के बाद, जब युद्ध विराम रेखा खींची गई थी, तब उसका विस्तार, जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में उत्तर की तरफ खोर से लेकर दक्षिण की ओर मनावर तक था। इस तरह यह रेखा उत्तर की तरफ NJ9842 के हिमशैलों (ग्लेशियर्स) की तरह जाती है। इस क्षेत्र में घास का एक तिनका तक नहीं उगता है, साँस लेना तक सर्द मौसम के कारण बेहद कठिन है।

लेकिन कुछ भी हो, यह ठिकाना ऐसा है जहाँ भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाएँ मिलती है, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है।
हमेशा की तरह अतिक्रमण और उकसाने वाली कार्यवाही पाकिस्तान द्वारा ही यहाँ भी की गई। पहले तो उसने सीमा तय होते समय 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो भारत का होता उसे चीन की सीमा में खिसका दिया। इसके अलावा वह उस क्षेत्र में विदेशी पर्वतारोहियों को और वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए बाहर के लोगों को भी बुलवाता रहता है, जब कि वह उसका क्षेत्र नहीं हैं। इसके अतिरिक्त भी उसकी ओर से अनेक ऐसी योजनाओं की खबर आती रहती है जो अतिक्रमण तथा आपत्तिजनक कही जा सकती है। यहाँ हम जिस प्रसंग का ज़िक्र विशेष रूप से कर रहे हैं, वह वर्ष 1987 का है। इसमें पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर पर, भारतीय सीमा के अन्दर अपनी एक चौकी बनाने का आदेश अपनी सेनाओं को दे दिया। वह जगह मौसम को देखते हुए, भारत की ओर से भी आरक्षित थी। वहाँ पर पाकिस्तान सैनिकों ने अपनी चौकी खड़ी की और 'कायद चौकी' का नाम दिया। यह नाम पाकिस्तान के जनक कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर रखा गया था।

उस चौकी की संरचना समझना भी बड़ा रोचक है। वह चौकी, ग्लेशियर के ऊपर एक दुर्ग की तरह बनाई गई, जिसके दोनों तरह 1500 फीट ऊँची बर्फ की दीवारें थीं। इसे पाकिस्तान ने अपनी यह चौकी 'कायद' बड़ी चुनौती की तरह, भारत की सीमा के भीतर बनाई थी, जिसे अतिक्रमण के अलावा कोई और नाम नहीं दिया जा सकता। जाहिर है, भारत के लिए इस घटना की जानकारी पाकर चुप बैठना सम्भव नहीं था। भारतीय सेना ने यह प्रस्ताव बनाया कि हमें इस चौकी को वहाँ से हटाकर उस पर अपना कब्जा कर लेना है। इस प्रस्ताव के जवाब में नायब सूबेदार बाना सिंह ने खुद आगे बढ़कर यह कहा कि वह इस काम को जाकर पूरा करेंगे। वह 8 जम्मू कश्मीर लाइट इंफेस्टरी में नायब सूबेदार थे। उन्हें इस बात की इजाज़त दे दी गई। नायब सूबेदार बाना सिंह ने अपने साथ चार साथी और लिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ लिए। योजना के अनुसार बटालियन के दूसरे लोग पाकिस्तान दुश्मन के सैनिकों को उलझा कर रखे रहे और उधर बाना सिंह और उनके साथियों ने उस चौकी तक पहुँचने का काम शुरू कर दिया।
'कायद पोस्ट' की सपाट दीवार पर, जो कि बर्फ की बनीं थी, उस पर चढ़ना बेहद कठिन और जोखिम भरा काम था। इसके पहले भी कई बार इस दीवार पर चढ़ने ने की कोशिश हिन्दुस्तानी सैनिकों की थी और नाकाम रहे थे। रात का तापमान शून्य से भी तीस डिग्री नीचे गिरा हुआ था।

तेज हवाएँ चल रही थी। पिछले तीन दिनों से लगातार जबरदस्त बर्फ गिर रही थी। भयंकर सर्दी के कारण बन्दूकें भी ठीक काम नहीं कर रहीं थीं। खैर, अँधेरे का फायदा उठाते हुए बाना सिंह और उनकी टीम आगे बढ़ी रही थी।

रास्ते में उन्हें उन भारतीय बहादुरों के शव भी पड़ी दिख रहे थे जिन्होंने यहां पहुँचने के रास्ते में प्राण गँवाए थे। जैसे-तैसे बाना सिंह अपने साथियों को लेकर ठीक ऊपर तक पहुँचने में कामयाब हो गये। वहाँ पहुँच कर उसने अपने दल को दो हिस्सें में बाँटकर दो दिशाओं में तैनात किया और फिर उस 'कायद पोस्ट' पर ग्रेनेड फेंकने शुरू किया।

वहाँ बने बंकरों में ग्रेनेड ने अपना काम दिखाया। साथ ही दूसरे दल के जवानों ने दुश्मन के सैनिकों को, जोकि उस चौकी पर थे, बैनेट से मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। वहां पर पाकिस्तान के स्पेंशल सर्विस ग्रुप (SSG) के कमांडो तैनात थे, जो इस अचानक हमले में मारे गए औ कुछ चौकी छोड़कर भाग निकले। कुछ ही देर में वह चौकी दुश्मनों के हाथ से भारतीय बहादुरों के हाथ में आ गई।

🔴मोर्चा फ़तह हुआ था। बाना सिंह समेत उनका दल सही सलामत उस पर काबिज हो गया।


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