Thursday, 3 March 2016

आपके PF को लगी नजर,25 साल के कर्मचारी की लगभग 18% बचत पर डाका


नई दिल्लीः ईपीएफ निकालने पर टैक्स को लेकर सरकार की दलीलों और एक्सपर्ट के अलग-अलग सुरे से भ्रम और विवाद गहराता जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि ईपीएफ पर टैक्स लगाने का यह प्रयास प्राइवेट क्षेत्र के कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई के हिस्से को छीनने की कोशिश है। यह ख़बर आने के बाद से ही लोग इसको लेकर परेशान हो गए हैं। कहीं से जवाब नहीं मिल पा रहा कि हकीकत में होने क्या वाला है.
अंग्रेजी एखवार टीओआई ने इस मामले पर कुछ कैल्कुलेशंस कीं, जिसमें पाया कि अगर सरकार ईपीएफ कॉन्ट्रिब्यूशंस के ब्याज पर टैक्स लगाती है तो करियर की शुरुआत करने वाला एक 25 साल का कर्मचारी अपनी पूरी बचत का लगभग पांचवां (लगभग 18%) हिस्सा टैक्स के तौर पर गवां देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कर्मचारी जो अपने करियर के आखिरी समय में एक सम्मानजनक सैलरी के स्तर पर पहुंच पाते हैं वह भी अपना कॉन्ट्रिब्यूशन रोक सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि देश का मध्यम वर्ग पहले से ही कई तरह के टैक्स के बोझ तले दबा हुआ है। ऐसे में टैक्स के दायरे को बढ़ाने की बजाय सरकार मौजूदा टैक्सपेयर्स से ही वसूली की तमाम संभावनाओं को तलाश रही है। इसके अलावा ईपीएफ निकासी पर प्रस्तावित यह नया टैक्स दोहरे कराधान को भी बढ़ावा देगा।सरकार की ओर से दलील दी जा रही है कि इसका मकसद लोगों को नैशनल पेंशन सिस्टम की तरफ प्रोत्साहित करना है, जो कि अभी तक लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने में विफल रहा है क्योंकि उस पर ईपीएफ के समान बेहतर रिटर्न नहीं मिल पाता। लिहाजा सरकार ने एनपीएस में निवेश को बढ़ाने के मकसद से ईपीएफ निकासी में ब्याज की 60 फीसदी रकम पर टैक्स (अगर उसे ऐन्युइटी में निवेश नहीं किया जाता है) लगाने का फैसला किया है।
सरकार का कहना है कि ये कदम इसलिए उठाए गए ताकि लोग पेंशन स्कीम पर जाएं, न कि सारा पीएफ़ निकाल लें।
-पीएफ़ और नेशनल पेंशन स्कीम में 40% निकासी पर टैक्स नहीं।
-अगर ये 60% पेंशन योजनाओं में जमा किया जाए तो टैक्स नहीं।
-यानी पेंशन योजनाओं में निवेश पर सौ फ़ीसदी छूट।
-मौत के बाद वारिस को पूरी रक़म टैक्स फ्री।
-मक़सद लोगों का पैसा निकाल लेने की जगह पेंशन योजनाओं में डालने को प्रोत्साहित करना।
हालांकि इस समस्या को हल करने के लिए ईपीएस (एंप्लॉयी पेंशन स्कीम) की कमियों को दूर कर उसे लागू किया जा सकता था, जो कि ईपीएफ का ही एक हिस्सा है। ईपीएफ के हरेक सदस्य को ईपीएस में कॉन्ट्रिब्यूट करना जरूरी होता है, लेकिन यह स्कीम बहुत खराब तरीके से डिजायन की गई थी। इसके तहत मासिक पेंशन 4000 रुपये से अधिक नहीं बढ़ पाती जो कि कई मामलों में आखिरी मासिक वेतन का 1 फीसदी भी नहीं होता।
विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार का दावा है कि इस टैक्स का मकसद लोगों को पेशंन प्लॉन के लिए प्रोत्साहित करना है जबकि वह इस तथ्य को नजरअंदाज कर गई कि ईपीएफ में पहले से ही पेंशन की व्यवस्था मौजूद है। सरकार को नैशनल पेंशन सिस्टम की तरफ लोगों को जबर्दस्ती धकेलने की बजाय ईपीएस को सुधारना चाहिए था।
अगर ऐसा किया जाता तो ईपीएस और एनपीएस में प्रतिस्पर्धा पैदा की जा सकती थी और लोगों के पास दोनों में से किसी एक को चुनने का विकल्प मौजूद रहता। यह सिस्टम मुक्त बाजार की अवधारणा का भी समर्थन करता है बजाय इसके कि हम पुराने नियामकीय दौर में लौटें।
ईपीएफ की मौजूदा स्थिति
टैक्स के मामले में ईपीएफ स्कीम मुक्त मुक्त मुक्त की श्रेणी में आती है। अर्थात इसमें जमा मूलधन, उस पर ब्याज अथवा निष्कासित राशि, किसी पर टैक्स नहीं लगता। नियोक्ताओं द्वारा किया जाने वाला योगदान भी कर मुक्त है।
बजट प्रस्ताव
2016-17 के बजट में वित्तमंत्री जेटली ने 1 अप्रैल, 2016 के पश्चात ईपीएफ से निकाली जाने वाली 60 फीसद राशि के ब्याज हिस्से पर आयकर लगाने का प्रस्ताव किया है। यही नहीं, नियोक्ताओं को भी नहीं बख्शा गया है। यदि एक साल में नियोक्ता का योगदान 1.5 लाख रुपये से अधिक हुआ तो उस अतिरिक्त राशि पर भी आयकर देय होगा।
प्रस्ताव से नुकसान
मान लो 1 अप्रैल, 2016 को किसी कर्मचारी की आयु 25 वर्ष और मूल वेतन 10,000 रुपये है। यदि उसे सालाना 10 फीसद की वेतनवृद्धि मिले तो 58वें वर्ष में उसके ईपीएफ खाते में कुल योगदान 1.87 लाख रुपये होगा। इसके 60 फीसद हिस्से यानी 112 लाख रुपये पर 30 फीसद के हिसाब से 34 लाख रुपये आयकर लगेगा। इस तरह 18 फीसद कम ईपीएफ मिलेगा। केवल इस 34 लाख रुपये को एन्यूटी या पेंशन स्कीम में लगाने से ही इस नुकसान से बचा जा सकेगा।
कितना झुकेगी सरकार?
सरकार प्रस्ताव में संशोधन तो अवश्य करेगी। लेकिन टैक्स पूरी तरह समाप्त कर देगी, इसमें संदेह है। क्योंकि बीमा कंपनियों की पेंशन स्कीमों को भी संभालना है। इसके लिए एन्यूटी व पेंशन स्कीमों में निवेश को ईपीएफ के मुकाबले आकर्षक बनाने के उपाय किए जा सकते हैं।
कायदे के मुताबिक मेरे वेतन से ईपीएफ का कटना ज़रूरी है। क्या सरकार मुझे ये विकल्प देने पर तैयार है कि मैं अपना पैसा ईपीएफ में जमा ना करूं? ये पैसा मैं स्टॉक मार्केट में क्यों नहीं लगा सकता? सरकार ने अभी तक ईपीएफ से जितना पैसा कमाया है वो कब, कहां और कैसे खर्च हुआ, हमें नहीं पता।
फोटो साभार नवभारत टाइम्स
मैं पहले भी ये मुद्दा उठा चुका हूं कि ईपीएफ का पैसा स्टॉक मार्केट में लगाया जाएगा तो मुझे इस बात की आज़ादी क्यों नहीं मिली। ईपीएफ के ब्याज पर टैक्स लिया जाएगा पर लंबे अरसे में मूलधन और ब्याज दोनों बराबर या कई बार ब्याज ही ज्यादा हो जाता है, तो क्या ऐसी हालत में ब्याज पर टैक्स लेना जायज है।
कहीं भी काम करने वाले व्यक्ति के लिए ईपीएफ निकालने की समय सीमा क्यों तय नहीं है। जैसे किसी भी निवेश में लॉकिंग पीरियड होता है, क्या इसमें कोई ऐसा लॉकिंग पीरियड दे रहे हैं। मेरा प्वाइंट यही है कि इस मुल्क का सिस्टम इतना करप्ट है कि मैं अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा सरकार के हाथ में क्यों दूं।

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